Artwork

Content provided by Startup Story (RaiBhiLo). All podcast content including episodes, graphics, and podcast descriptions are uploaded and provided directly by Startup Story (RaiBhiLo) or their podcast platform partner. If you believe someone is using your copyrighted work without your permission, you can follow the process outlined here https://player.fm/legal.
Player FM - Podcast App
Go offline with the Player FM app!

AAG KI BHEEKH

3:32
 
Share
 

Manage episode 318869199 series 3201953
Content provided by Startup Story (RaiBhiLo). All podcast content including episodes, graphics, and podcast descriptions are uploaded and provided directly by Startup Story (RaiBhiLo) or their podcast platform partner. If you believe someone is using your copyrighted work without your permission, you can follow the process outlined here https://player.fm/legal.
आग की भीख धुँधली हुई दिशाएँ, छाने लगा कुहासा, कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँसा। कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है, मुंह को छिपा तिमिर में क्यों तेज सो रहा है? दाता पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे, बुझती हुई शिखा को संजीवनी पिला दे। प्यारे स्वदेश के हित अँगार माँगता हूँ। चढ़ती जवानियों का श्रृंगार मांगता हूँ। बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है, कोई नहीं बताता, किश्ती किधर चली है? मँझदार है, भँवर है या पास है किनारा? यह नाश आ रहा है या सौभाग्य का सितारा? आकाश पर अनल से लिख दे अदृष्ट मेरा, भगवान, इस तरी को भरमा न दे अँधेरा। तमवेधिनी किरण का संधान माँगता हूँ। ध्रुव की कठिन घड़ी में, पहचान माँगता हूँ। आगे पहाड़ को पा धारा रुकी हुई है, बलपुंज केसरी की ग्रीवा झुकी हुई है, अग्निस्फुलिंग रज का, बुझ डेर हो रहा है, है रो रही जवानी, अँधेर हो रहा है! निर्वाक है हिमालय, गंगा डरी हुई है, निस्तब्धता निशा की दिन में भरी हुई है। पंचास्यनाद भीषण, विकराल माँगता हूँ। जड़ताविनाश को फिर भूचाल माँगता हूँ। मन की बंधी उमंगें असहाय जल रही है, अरमानआरज़ू की लाशें निकल रही हैं। भीगीखुशी पलों में रातें गुज़ारते हैं, सोती वसुन्धरा जब तुझको पुकारते हैं, इनके लिये कहीं से निर्भीक तेज ला दे, पिघले हुए अनल का इनको अमृत पिला दे। उन्माद, बेकली का उत्थान माँगता हूँ। विस्फोट माँगता हूँ, तूफान माँगता हूँ। आँसूभरे दृगों में चिनगारियाँ सजा दे, मेरे शमशान में आ श्रंगी जरा बजा दे। फिर एक तीर सीनों के आरपार कर दे, हिमशीत प्राण में फिर अंगार स्वच्छ भर दे। आमर्ष को जगाने वाली शिखा नयी दे, अनुभूतियाँ हृदय में दाता, अनलमयी दे। विष का सदा लहू में संचार माँगता हूँ। बेचैन ज़िन्दगी का मैं प्यार माँगता हूँ। ठहरी हुई तरी को ठोकर लगा चला दे, जो राह हो हमारी उसपर दिया जला दे। गति में प्रभंजनों का आवेग फिर सबल दे, इस जाँच की घड़ी में निष्ठा कड़ी, अचल दे। हम दे चुके लहु हैं, तू देवता विभा दे, अपने अनलविशिख से आकाश जगमगा दे। प्यारे स्वदेश के हित वरदान माँगता हूँ। तेरी दया विपद् में भगवान माँगता हूँ। - रामधारी सिंह 'दिनकर' --- Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/raibhilo/message
  continue reading

50 episodes

Artwork
iconShare
 
Manage episode 318869199 series 3201953
Content provided by Startup Story (RaiBhiLo). All podcast content including episodes, graphics, and podcast descriptions are uploaded and provided directly by Startup Story (RaiBhiLo) or their podcast platform partner. If you believe someone is using your copyrighted work without your permission, you can follow the process outlined here https://player.fm/legal.
आग की भीख धुँधली हुई दिशाएँ, छाने लगा कुहासा, कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँसा। कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है, मुंह को छिपा तिमिर में क्यों तेज सो रहा है? दाता पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे, बुझती हुई शिखा को संजीवनी पिला दे। प्यारे स्वदेश के हित अँगार माँगता हूँ। चढ़ती जवानियों का श्रृंगार मांगता हूँ। बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है, कोई नहीं बताता, किश्ती किधर चली है? मँझदार है, भँवर है या पास है किनारा? यह नाश आ रहा है या सौभाग्य का सितारा? आकाश पर अनल से लिख दे अदृष्ट मेरा, भगवान, इस तरी को भरमा न दे अँधेरा। तमवेधिनी किरण का संधान माँगता हूँ। ध्रुव की कठिन घड़ी में, पहचान माँगता हूँ। आगे पहाड़ को पा धारा रुकी हुई है, बलपुंज केसरी की ग्रीवा झुकी हुई है, अग्निस्फुलिंग रज का, बुझ डेर हो रहा है, है रो रही जवानी, अँधेर हो रहा है! निर्वाक है हिमालय, गंगा डरी हुई है, निस्तब्धता निशा की दिन में भरी हुई है। पंचास्यनाद भीषण, विकराल माँगता हूँ। जड़ताविनाश को फिर भूचाल माँगता हूँ। मन की बंधी उमंगें असहाय जल रही है, अरमानआरज़ू की लाशें निकल रही हैं। भीगीखुशी पलों में रातें गुज़ारते हैं, सोती वसुन्धरा जब तुझको पुकारते हैं, इनके लिये कहीं से निर्भीक तेज ला दे, पिघले हुए अनल का इनको अमृत पिला दे। उन्माद, बेकली का उत्थान माँगता हूँ। विस्फोट माँगता हूँ, तूफान माँगता हूँ। आँसूभरे दृगों में चिनगारियाँ सजा दे, मेरे शमशान में आ श्रंगी जरा बजा दे। फिर एक तीर सीनों के आरपार कर दे, हिमशीत प्राण में फिर अंगार स्वच्छ भर दे। आमर्ष को जगाने वाली शिखा नयी दे, अनुभूतियाँ हृदय में दाता, अनलमयी दे। विष का सदा लहू में संचार माँगता हूँ। बेचैन ज़िन्दगी का मैं प्यार माँगता हूँ। ठहरी हुई तरी को ठोकर लगा चला दे, जो राह हो हमारी उसपर दिया जला दे। गति में प्रभंजनों का आवेग फिर सबल दे, इस जाँच की घड़ी में निष्ठा कड़ी, अचल दे। हम दे चुके लहु हैं, तू देवता विभा दे, अपने अनलविशिख से आकाश जगमगा दे। प्यारे स्वदेश के हित वरदान माँगता हूँ। तेरी दया विपद् में भगवान माँगता हूँ। - रामधारी सिंह 'दिनकर' --- Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/raibhilo/message
  continue reading

50 episodes

All episodes

×
 
Loading …

Welcome to Player FM!

Player FM is scanning the web for high-quality podcasts for you to enjoy right now. It's the best podcast app and works on Android, iPhone, and the web. Signup to sync subscriptions across devices.

 

Quick Reference Guide