Podcasts by 'Swami Atmananda Saraswati' of 'Vedanta Ashram, Indore' (MP), India. These are short audio clips of topic of Vedanta - in Hindi. One of our recent series is an Online Study Class on 'Atma-Bodha', a short treatise of 68 shlokas Self-Knowledge. It is written by Sri Adi Shankaracharya.
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Small Big Wins started in middle of 2020. The primary objective has been to talk to people who are not so famous or known but have done exceptional work. Most of these conversations are with people who have done some real solid social good, while also holding up their selflessness. Their wins in their own words. You be the judge, whether Small or Big. Coming to my latest conversations with Swami Atmananda Saraswati ji, I would first share in a few words my own journey of searching the higher ...
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Who is My Charioteer - Part 1 - What is the Role of Visiting Holy Places
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https://sbw.hvj.coach/episodes/charioteer/episode5By HVJ
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Who is My Charioteer - Part 1 - What is Shraddha
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Who is My Charioteer - Part 1 - What is Sanatan & What is Sanatan Dharma
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https://sbw.hvj.coach/episodes/charioteer/sanatanBy HVJ
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Who is My Charioteer - Part 1 - What is Dharma
59:34
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Who is My Charioteer - Part 1 - What is Human Quest
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Gaurav on life, risks, pursuits and Maruvan : Part 3 The clarity on life’s purpose
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Gaurav on life, risks, pursuits and Maruvan : Part 2 The story of Maruvan
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Gaurav on pursuits, risks and Maruvan : Part 1 "The Journey"
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Niwas and Shivani on the story of Anantmool – a gender neutral learning center
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Tanvi, a proud trans woman, on her journey from Pretence to Reality!
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"Discarded tyres to sustainable furniture" - Vaishali’s story of conscious capitalism
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Ganesh on the "Lakhpati Kisan" initiative
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Nidhi on manifestation, braille and children
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“A wheelchair won’t stop me from doing what I want to” - Meet Somya Dawar
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Renuka on climate action, plant signaling and redefining agriculture through BioPrime Agrisolutions
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उपदेश सार के अंतिम, ११वें प्रवचन में पूज्यपाद श्री स्वामी आत्मानन्द जी महाराज बताते हैं की पूर्व के श्लोक में आत्मा-चिंतन का महादेव ने तरीका बताया अब इसका एक और सरल उपाय बताते हैं। यह है - पांचकोश विवेक। साधक को एक एक करके उपाधियों में अपनी एटीएम बुद्धि को समाप्त करना चाइये तब ही आत्म-ज्ञान में स्थिरता होती है। विपरीत ज्ञान ही ज्ञान में निष्ठां के …
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उपदेश सार के १०वें प्रवचन में पूज्य गुरूजी श्री स्वामी आत्मानन्द जी महाराज बताते हैं की अपने मन पर विचार करने के लिए एक सरल उपाय होता है। वे बताते हैं की मन वृत्तियों का प्रवाह होता है। हमारे मन में प्रत्येक वृत्ति किसी न किसी विषय की तरफ हमारा ध्यान मोड़ती है। अतः मोटे तौर से इन सब वृत्तियों को 'इदं वृत्ति" कहा जाता है। यद्यपि ज्यादातर वृत्तियाँ इद…
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उपदेश सार के ९वें प्रवचन में पू स्वामी आत्मानन्द जी ने बताया की एक-चंतन रुपी साधना के लिए महर्षि कहते हैं जब तक दूसरे का अस्तिव्त है तब तक ही मन कहीं भटकेगा लेकिन जब अन्य मिथ्या हो जाता है और आत्मा ही सत्य जान ली जाती है तब मन कहाँ जायेगा? इसके लिए वे केहते हैं की अपने मन में जो कोई भी विचार हैं उन्हें दृश्यवारित अर्थात दृश्य से रहित कर देना चाहिए।…
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Kaveri “The Dog Mother” on dedicating her life to animal rescue and SMART sanctuary
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उपदेश सार के ८वें प्रवचन में पू स्वामी आत्मानन्द जी ने बताया की जब किसी पुण्यात्मा ने अपने जीवन में भक्ति का आशीर्वाद प्राप्त कर लिया तो निश्चित रूप से उसका मन शान्त और सात्त्विक हो जाता है, लेकिन जब तक ईश्वर के चरणों में अनुराग प्राप्त नहीं होता है, तब तक मन इधर-उधर भटकता है। कई बार आँधियों और तूफ़ान आते हैं, ऐसे मन को कैसे निग्रहीत करा जाये। इसके …
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उपदेश सार के सातवें प्रवचन में पू स्वामी आत्मानन्द जी ग्रन्थ के ८वें से लेकर १०वें श्लोक पर चर्चा करते हैं। भक्ति की साधना मोठे तौर से दो भागों में विभाजित होती है। एक में भगवान् अभी भक्त से अलग होते हैं, वे हम से अलग किसी लोक में रहते हैं, तथा बाद में कुछ लोग भगवन को अपने ह्रदय में अंतर्यामी की तरह से जानते हैं। ऐसे भक्त कभी अपने को भगवान् का अंश …
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उपदेश सार के छठे प्रवचन में पू स्वामी आत्मानन्द जी ग्रन्थ के ५वें से लेकर ७वें श्लोक पर प्रकाश डालते हैं। ये तीनों श्लोक पिछले श्लोक में बताई गयी तीनों साधनाओं का स्वरुप दिखाते हैं। अर्थात, पूजा क्या होती है, जप क्या है और कैसे होता है और ध्यान किसे कहते हैं।
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उपदेश सार के पांचवे प्रवचन में ग्रन्थ के चौथे श्लोक पर प्रकाश डालते हुए पूज्य स्वामी जी ने बताया कि इस श्लोक से भगवान् हमें ईश्वर भक्ति की प्राप्ति के साधन बता रहे हैं। हमारी तीन धरातल की चर्चा करते हुए वे कहते हैं की एक हमारा शारीरिक धरातल होता है, एक इन्द्रिय, और विशेष रूप से वाणी का और तीसरा अत्यंत महत्वपूर्ण हमारे मन का धरातल होता है। हमें अपनी…
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उपदेश सार के चौथे प्रवचन में ग्रन्थ के तीसरे श्लोक पर प्रकाश डालते हुए पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने बताया कि पिछले श्लोक में महादेवजी ने बताया की कर्म कब मन रुपी मुकुर (शीशे) करने वाला बन जाता है, और अब इस श्लोक में वे बताते हैं की कर्म कब बंधनकारी बन जाता है। जिसकी प्राथमिकताएँ लौकिक वस्तुओं की होती हैं वे लोग ही बाहरी घटनाओं से प्रभावित होते…
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उपदेश सार के तीसरे प्रवचन में ग्रन्थ के दूसरे श्लोक पर प्रकाश डालते हुए पूज्यपाद श्री स्वामी आत्मानन्द जी महाराज ने बताया कि कर्म अत्यंत समर्थ होता है। अनेकानेक लौकिक आवश्यकताएं कर्म से ही प्राप्त हो सकती हैं, इसलिए कर्म अवश्य करना चाहिए। कर्म केवल अपनी लौकिक जरूरतों के लिए नहीं होता है, लेकिन एक कर्म का अत्यंत महान और दिव्य सामर्थ्य के लिए भी होता…
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उपदेश सार पर अपने दूसरे प्रवचन में उपदेश सार के पहले ष्लोक पर प्रकाश डालते हुए पूज्य स्वामी आत्मानन्द जी महाराज ने बताया कि भगवान शंकर अपने प्रिय कर्मनिष्ठ एवं तपस्वी भक्तों को एक मोक्षदायी उपदेश देने के लिए भूमिका बनाते हैं और पहले श्लोक में कुछ महत्वपूर्ण बातें बताते हैं। पहली चीज़ वे कहते हैं की : १. कर्म सदैव अपने स्पष्ट संकल्प से प्रारम्भ करना …
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Ramveer "Library Man of India" on Education and Mission Rural Libraries
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Dr Ali Khwaja and the story of Banjara Academy
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उपदेश सार ग्रन्थ पर प्रवचन श्रृंखला का शुभारम्भ करते हुए पूज्य स्वामी आत्मानन्द जी महाराज ने इसकी भूमिका बताई। शिव पुराण के अंतर्गत प्राप्त इस कथा में उन्होंने बताया की - जब कुछ कर्म निष्ठ तपस्वी लोग अनेकानेक जीवन के लक्ष्य रखते थे और कर्म के साथ-साथ ईश्वर से भक्ति-पूर्वक आशीर्वाद भी प्राप्त करते थे तो उन्हें निश्चित रूप से बहुत सिद्धियां प्राप्त ह…
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Deep on his mission to solve feminine hygiene issues through social entrepreneurship
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Pallavi on teaching Hindi and breaking the language barriers and bringing inclusivity for expats in India
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Shalini on the journey of “why me” to “why not me”
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Nisheeth Mehta on specially abled, social inclusion and employment
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Suman, India’s PadWoman & Oscar Winner, on MHM, Men and Society
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आत्म-बोध के आखिरी, अर्थात 68th श्लोक में भगवान् शंकराचार्यजी महाराज हमें आत्म-ज्ञान की प्राप्ति के तरीके और यात्रा को एक तीर्थ यात्रा से तुलना करते हैं। जैसे एक तीर्थ यात्रा किसी दूरस्थ देवता के दर्शन की तीव्र उत्कंठा से प्रेरित होती है, और जहाँ जाने के लिए हमें अपने समस्त परिवार के लोग, धन-दौलत, घर-बार आदि के प्रति मोह किनारे करना पड़ता है और ऐसी ज…
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आत्म-बोध के 67th श्लोक में भगवान् शंकराचार्यजी महाराज हमें आत्म-ज्ञान के उदय को एक सूर्य उदय से तुलना करते हैं। जैसे जब सूर्योदय होता है, तब दुनिया में विराजमान अन्धकार तत्क्षण दूर हो जाता है, और इसके फल-स्वरुप अन्धकार के समस्त कार्य भी दूर हो जाते हैं। उसी प्रकार अपने यथार्थ से अनभिज्ञ हम सब अनेकानेक कल्पनाओं में पड़े हुए हैं। हम लोगों का पूरा संसा…
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आत्म-बोध के 66th श्लोक में भगवान् शंकराचार्यजी हमें अपने ब्रह्म-ज्ञान हेतु पूरी यात्रा का सारांश बता रहे हैं। वे कहते हैं की याद करो की यह तुम्हारी आध्यात्मिक यात्रा कहाँ से प्रारम्भ हुई थी। हम सब के अंदर एक अपूर्णता थी, असुरक्षा थी, जिसकी निवृत्ति के लिए अनेकानेक आकांक्षाएं थी। इन कामनाओं के कारण अनेकों आसक्तियां, राग और द्वेष उत्पन्न हो जाते हैं।…
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आत्म-बोध के 65th श्लोक में भगवान् शंकराचार्यजी हमें ब्रह्म-ज्ञानी की दृष्टी के बारे में बताते हैं। जो तत्त्व के अज्ञानी होते हैं, वे दुनियां को सतही दृष्टि से ही देखते हैं इसलिये उतने मात्र को ही सत्य मानते हैं। विविध रूप और उनके नाम, हो हमारे शरीर से किसी भी तरह से जुड़े हुए हैं वे ही अपने समझे जाते हैं, अन्य सब पराये होते हैं। ऐसे लोगों की दृष्टी …
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आत्म-बोध के 64th श्लोक में भगवान् शंकराचार्यजी हमें ब्रह्म-ज्ञान में सतत रमने के लिए ज्ञान और प्रेरणा दे रहे हैं। अगर हमारा ज्ञान सदैव एकांत में बैठ के ही संभव होता है तो समझ लीजिये की अभी जगत के मिथ्यात्व की सिद्धि नहीं हुई है। एक बार ज्ञान की स्पष्टता हो जाये उसके बाद एकांत से निकल कर विविधता पूर्ण दुनिया के मध्य में, व्यवहार में अवश्य जाना चाहिए…
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आत्म-बोध के 63rd श्लोक में भगवान् शंकराचार्यजी हमें ब्रह्म की अद्वितीयता की सिद्धि का तरीका बताते हैं। ध्यान रहे की जब तक द्वैत रहता है तब तक हमारा छोटापना, अर्थात जीव-भाव बना रहता है - तब तक कितना भी ज्ञान प्राप्त करलो मुक्ति नहीं मिलती है। द्वैत का मतलब होता है की हमारी यह धरना की हमसे पृथक किसी स्वतंत्र वस्तु का अस्तित्व है। यही नहीं वह वस्तु ही…
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आत्म-बोध के 62nd श्लोक में भी भगवान् शंकराचार्यजी हमें ब्रह्म की प्रकाश स्वरूपता की विलक्षणता दिखा रहे हैं। ब्रह्म की प्रकाशरूपता दिखने के लिए कई बार सूर्य के दृष्टांत का प्रयोग किया जाता है। इस दृष्टांत में प्रकाश-रूपता की तो साम्यता है, लेकिन एक समस्या भी होती है, और वो है सूर्य जैसे एकदेशीय होने की संभावना। समस्त लौकिक प्रकाश एकदेशीय होते हैं, औ…
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आत्म-बोध के 61st श्लोक में भी भगवान् शंकराचार्यजी हमें ब्रह्म की महिमा बता रहे हैं। हम लोग सतत कुछ तलाश करते रहते हैं। ऐसे चीज़ की तलाश जो हमें और सुखी एवं करदे। लेकिन विडम्बना यह है, की पूरी दुनियाँ में लोग दुखी हैं, संतप्त हैं। तनाव आज कल की दुनिया की बहुत ही बड़ी समस्या बन गयी है। क्यों? क्यों की हम सबने अनेकों वस्तुएं तो प्राप्त करी हैं लेकिन ये …
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आत्म-बोध के 60th श्लोक में भी भगवान् शंकराचार्यजी हमें ब्रह्म की महिमा बता रहे हैं। सत्य की खोज सतत और सर्वत्र होती रहती है। प्रत्येक देश और काल में यह मानव की जिज्ञासा का विषय रहा है। सत्य की खोज करते-करते मनुष्य को अनेकानेक महत्वपूर्ण वस्तुएँ मिल जाती हैं जो की बहुत की काम की भी होती हैं, कई बार हम लोग उन महत्वपूर्ण और उपयोगी वस्तुओं को अपना भगवा…
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आत्म-बोध के 59th श्लोक में भी भगवान् शंकराचार्यजी हमें ब्रह्म की एक और महिमा बता रहे हैं। संसारी लोगों की दुनिया से आये हम सब की बुद्धि एक बहुत बड़े दोष से युक्त होती है - और वो है की ब्रह्म को भी अन्य किसी विषय की तरह से बाहरी, ग्राह्य एवं कर्म के प्राप्त करने योग्य वस्तु समझना। कर्म की सीमाओं की चर्चा आत्म-बोध के प्रारम्भिक श्लोकों में करी जा चुकी…
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आत्म-बोध के 58th श्लोक में भी भगवान् शंकराचार्यजी हमें ब्रह्म की महिमा बता रहे हैं। अपने मन को भी ब्रह्म में निष्ठ करने के लिए वे चर्चा कर रहे हैं - आनन्द की। हम लोगों की बुद्धि में ब्रह्म-ज्ञान की स्पष्टता होनी चाहिए, और मन में ब्रह्म-ज्ञान हेतु निष्ठा। हम सबका मन, भले वो छोटा व्यक्ति हो या बड़ा, पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़, देसी हो या विदेशी, संसारी हो या…
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आत्म-बोध के 57th श्लोक में भी भगवान् शंकराचार्यजी हमें ब्रह्म की महिमा, उसके एक प्रसिद्द लक्षण के द्वारा बताते हैं। आचार्य कह रहे हैं, की हम सब ने ब्रह्म के बारे में अनेकों से सुना होगा, लेकिन हमें सदैव शास्त्रोक्त लक्षण को ही प्रधानता देनी चाहिए। ब्रह्म वो है जो की अतत-व्यावृत्ति लक्षण के द्वारा वेदांत शास्त्रों में लक्षित किया जाता है। पू स्वामीज…
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आत्म-बोध के 56th श्लोक में भी भगवान् शंकराचार्यजी हमें ब्रह्म की महिमा उसका वास्तविक अर्थ बता रहे हैं। श्लोक का अंतिम पद समान है - की उसको ही ब्रह्म जानो। किसको? जो श्लोक में पूर्ण तत्व है। जो सचिदानन्द स्वरुप है। वो ही तीनों दिशाओं में अपनी माया से विविध रूपों में अभिव्यक्त हो रहा है। तीन दिशाएं मतलब - ऊपर, नीचे और पृथ्वी के ऊपर। जो स्वतः अनंत है,…
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आत्म-बोध के 55th श्लोक में भी भगवान् शंकराचार्यजी हमें ब्रह्म-ज्ञान में पूरे दिल से निष्ठ होकर उसी में रमने के लिए ब्रह्म की कुछ और महिमा बता रहे हैं। पू गुरूजी यहाँ पर बताते हैं की प्रत्येक मनुष्य में एक दिमाग और एक दिल होता है। वेदान्त में पहले दिमाग को प्रबुद्ध किया जाता है और फिर अपनी ही बुद्धि से अपने ही दिल में ज्ञान उतारा जाता है। यह पढ़ाओ सब…
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आत्म-बोध के 54th श्लोक में भी भगवान् शंकराचार्यजी हमें ब्रह्म-ज्ञान में पूरे दिल से निष्ठ होकर उसी में रमने के लिए ब्रह्म की महिमा बता रहे हैं। ये श्लोक उनके लिए भी हो सकते हैं जो अभी पूरे दिल से ब्रह्म-ज्ञान के लिए समर्पित नहीं हुए हैं और अभी भी बहिर्मुख हैं, अर्थात किसी न किसी दुनिया की वस्तुओं से तृप्त होना चाहते हैं। वे कहते हैं की उसे ब्रह्म ज…
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