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Ep-315 अध्याय 17- श्रद्धा,दान,भोजन के प्रकार का सार
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बहुत बहुत आभार पंकज जी बहुत ही दिव्य अनुभूति कराने हेतु सत्संग देने के लिए आभार आपको🙏 भगवद गीता अध्याय 17 श्रद्धा,दान,भोजन के प्रकार का सार बताया।
जिसमे बताया हमारी श्रद्धा दिव्य होनी चाहिए भगवान के प्रति संपूर्ण विश्वास ही हमारी श्रद्धा है,फिर दान के बारे बताया भगवद गीता के मुताबिक दान वह है जो एक हाथ से हो दूसरे को पता न चले और हमारे गोलोक एक्सप्रेस में ये दान सिखाया गया सबके लिए माला करो किसी को अपनी माला डेडिकेट करना ये दान उत्तम बताया गया।आगे भोजन के प्रकार पर पंकज जी ने विशेष चर्चा करी जैसे की भगवद गीता में बताया गया प्रभु के लिए पकाया गया भोजन फिर उनको अर्पित करके प्रसाद रूप में पायेंगे वही उत्तम बाकी अगर इंद्रिय तृप्ति के लिए पकाया गया भोजन पाप है फिर वाणी की तपस्या के लिए बताया गया व्यर्थ की बाते न करे वाणी को प्रभु के लिए उपयोग करे उनकी महिमा का गुणगान करे,उनके भजन गाए व्यर्थ की चर्चा का वाणी में उपयोग न करे बहुत बहुत सुंदर वर्णन पंकज जी🙏
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बहुत बहुत आभार पंकज जी बहुत ही दिव्य अनुभूति कराने हेतु सत्संग देने के लिए आभार आपको🙏 भगवद गीता अध्याय 17 श्रद्धा,दान,भोजन के प्रकार का सार बताया।
जिसमे बताया हमारी श्रद्धा दिव्य होनी चाहिए भगवान के प्रति संपूर्ण विश्वास ही हमारी श्रद्धा है,फिर दान के बारे बताया भगवद गीता के मुताबिक दान वह है जो एक हाथ से हो दूसरे को पता न चले और हमारे गोलोक एक्सप्रेस में ये दान सिखाया गया सबके लिए माला करो किसी को अपनी माला डेडिकेट करना ये दान उत्तम बताया गया।आगे भोजन के प्रकार पर पंकज जी ने विशेष चर्चा करी जैसे की भगवद गीता में बताया गया प्रभु के लिए पकाया गया भोजन फिर उनको अर्पित करके प्रसाद रूप में पायेंगे वही उत्तम बाकी अगर इंद्रिय तृप्ति के लिए पकाया गया भोजन पाप है फिर वाणी की तपस्या के लिए बताया गया व्यर्थ की बाते न करे वाणी को प्रभु के लिए उपयोग करे उनकी महिमा का गुणगान करे,उनके भजन गाए व्यर्थ की चर्चा का वाणी में उपयोग न करे बहुत बहुत सुंदर वर्णन पंकज जी🙏
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